चौथा वचन - हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?

7 Krush Vani In Hindi | Good Friday | क्रूस वाणी | हिंदी | यीशु की अंतिम सात वचन

इन शब्दों पर ध्यान दें और अपने जीवन को देखें। हममें से शायद ही कोई ऐसे होंगे जिन्होने अकेलेपन का अनुभव न किया होगा। मनुष्य जन्म लेता है साथ में जीने के लिये। पहले हम अपने माता-पिता के साथ, फिर जीवन साथी के साथ, फिर अपने बच्चों के साथ जीते हैं। बच्चे ब्याह करते है, अलग होने लगते है । हम बूढ़े होने लगते हैं...कोई साथी पहले चला जाता है एक अकेला रह जाता है। ये अकेला होना तो किसी के न होने से अकेला हो जाना है। लेकिन एक अकेलापन जो मनुष्य को अंदर से बुरी तरह तोड़ देता है वह है किसी के रहते हुए, साथ न देने के कारण अकेला हो जाना। एक व्यक्ति पास में है, साथ में है, पर वहां केवल उसका शरीर है वह खुद साथ नहीं दे रहा है, तब दूसरा अकेलापन महसूस करता है, टूट जाता है।

क्या यीशु जो मानव-ईश्वर था अकेला हो सकता था ? हां! उसने भी अकेलेपन को मनुष्य रूप में अनुभव किया ताकि वह उनका साथ दे सके जो अकेले हो जाते हैं। यदि आप अकेले हैं आपको ऐसा लग रहा है सबने आपको छोड़ दिया है तो यीशु स्वयं आपके अकेलेपन को महसूस करके कहता है "मैं तुझे न छोडूंगा, न त्यागूंगा" ।

क्रूस पर से कहे गये इन वचनों में न केवल यीशु को, संसार से संबंध टूटने पर हम अकेला देखते हैं पर उससे भी बड़ी बात यह है कि उसे अपने पिता से भी अलग हो जाने की पीड़ा को झेलते हुये देखते हैं।

तीसरे पहर के निकट

दोपहर के तीन बजे, यह समय प्रतिदिन के बलिदान के पशु को मारने तथा भेंट चढ़ाने का समय होता था। यहूदी प्रथा अनुसार प्रतिदिन का बलिदान साढ़े आठवें घण्टे मारा जाता था तथा साढ़े नौवें घण्टे अर्पण किया जाता था। उसी समय फसह का मेमना भी मारा जाता था। उसे पहले अर्पित किया जाता था फिर दैनिक बलिदान चढ़ाया जाता था।

ऐसे ही समय में यीशु क्रूस पर टंगा था। कैसी अजीब बात है! परन्तु सत्य है ताकि शास्त्र की बातें पूरी हों ।

अंधकार

एक गहरा अंधकार तीन घण्टे तक दोपहर को सब तरफ छा गया। ऐसा पहले इस समय नहीं हुआ था। तीन बजे ही अंधेरा क्यों हो गया है! हम प्रारंभ से देखते आ रहे हैं कि यीशु के साथ हो रही हर घटना में भविष्यद्वाणी पूरी हो रही थी...यहां हम शास्त्र के दो वचनों को पूरा होते देखते हैं:

"उस समय मैं सूर्य को दोपहर के समय अस्त करूंगा और इस देश को दिन दुपहरी अंधियारा कर दूंगा।" आमोस 8:9 "उसका सूर्य दोपहर ही को अस्त हो गया"। यिर्मयाह 15:9 

यीशु के जीवनकाल में यहूदियों ने हमेशा यीशु से स्वर्ग से चिन्ह मांगा। उनकी आंखों के सामने छाया अन्धेरा आने वाले अंधकार का स्वागत था जो यहूदी राष्ट्र में आने वाला था। इस अंधेरे में हम एक संदेश देखते हैं कि वे अंधेरे का कार्य कर रहे थे, उन्हें ज्योति पसंद नहीं थी...यह अंधेरा इन यहूदियों की, यीशु के साथ कर रहे पापों की पहचान थी। ये लोग जो ज्योति की जगह अंधकार के प्रेमी थे....उनका अंत निश्चित था ।

आवाज

अंधकार का अंत होते प्रभु यीशु अपनी आत्मा की गहन पीड़ा में बड़ी जोर से चिल्लाया,

"हे मेरे परमेश्वर! हे मेरे परमेश्वर तूने मुझे क्यों छोड़ दिया!" (मरकुस 15:34)

प्रभु यीशु को सूरज की रौशनी से वंचित कर दिया गया। यीशु के जीवन की एक विशेष घड़ी थी जो उसके जीवन में कभी नहीं आई थी... परमेश्वर जो उसका सब कुछ था, जिसने उसे भेजा था, जिसकी सामर्थ से वह सब कुछ करता था, उसी ने उसे इस समय छोड़ दिया। जबकि इस दुख की घड़ी में पिता की संगति की सबसे ज्यादा आवश्यक थी। संसार ने साथ छोड़ दिया, कोई शिकायत नहीं पर पिता परमेश्वर ने उसे अलग कर दिया, यह एक बड़ा सवाल बन कर रह गया।

"रोग में मनुष्य अपनी आत्मा से संभलता है। परन्तु जब । आत्मा हार जाती है तब इसे कौन सह सकता है।" (नीतिवचन 18:14)

परमेश्वर पाप के साथ एक नहीं हो सकता। उद्धार की योजना में यीशु हमारे लिये "पाप" बन गया। इसलिये परमेश्वर का क्रोध उस पर भड़का ।

"जो.....अधर्म को मानते हैं, उन पर क्रोध और कोप पड़ेगा। (रोमियो 2:8)

यीशु बलिदान बन गया तथा इस पीड़ा की प्रक्रिया में से होकर गया। स्वर्ग से यीशु पर क्रोध की आग गिरी ताकि बलिदान भस्म हो जाये । पुराने नियम में बलिदान की इस विधी को हम देखते हैं।

"और यहोवा के सामने से आग निकलकर चरबी सहित होम बलि को वेदी पर भस्म कर दिया।” (लैव्यवस्था 9:24) 

"जब सुलेमान यह प्रार्थना कर चुका, तब स्वर्ग से आग ने गिरकर होमबलियों तथा और बलियों को भस्म किया, और यहोवा का तेज भवन में भर गया।" (2 इतिहास 7:1)

यह आग पापियों पर गिरनी थी जिसे यीशु ने बलिदान बनकर अपने उपर गिरने दी.... जिससे यीशु ऊंचे स्वर से चिल्ला उठा । अपने आप को पापियों के पाप के लिये बलिदान हेतू दे देना सर्वोच्च प्रेम का परिणाम है। इस आवाज में सारी आवाजों का अकेलापन था ।

असर

यीशु ने पिता से इस प्रार्थना में कुछ और कहा लोगों ने इसे कुछ और समझा। जो क्रूस के पास खड़े थे उन्होंने सोचा कि वह तो संतो से प्रार्थना कर रहा है या तो परमेश्वर ने उसे छोड़ दिया है या उसने परमेश्वर को छोड़ दिया है। उन्हें लगा वह एलिय्याह को पुकार रहा है।

यह सुनकर एक सिपाही ने सिरके में स्पंज डूबो कर उसके मुंह तक ले जाना चाहा और वे ताने देने लगे "अपना मुंह ठण्डा कर ले.... ये उसके पीने लायक चीज है" और आगे वे उसका मजाक उड़ाने लगे..." इसे अकेले छोड़ दो देखते हैं एलिय्याह इसे उतारने आता है कि नहीं।" इसका क्या अर्थ है...यदि नहीं आता है तो हम समझ जायेंगे कि उसने भी यीशु को छोड़ दिया।

"तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिये।"

यहां से यीशु का समर्पण प्रारंभ हुआ। उसने अपना प्राण पिता के हाथ में छोड़ दिया । इतनी जोर के साथ कहे शब्द यह प्रस्तुत करते हैं कि बड़ी सामर्थ के साथ यह आवाज निकली होगी ।

ये समर्पण यह सिखाता है कि जो कुछ भी हम करें। पूरे जोश व सामर्थ से प्रभु के लिये करें, परमेश्वर पिता के लिये ऐसे ही अपने कर्तव्य को अन्तिम दम तक पूरा करें। पूर्ण मन और आत्मा से पिता के लिये आत्मत्याग करें। संभव है हमारी आवाज टूट जाये कि हम इतनी जोर से चिल्ला न सकें जैसा कि यीशु की स्थिति थी। परन्तु यदि हृदय में प्रभु की सामर्थ है तो आवाज भी निकलेगी।

क्रूस पर प्राण छूटना : मंदिर का परदा फटना

"और मंदिर का परदा ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया ।"

यह मंदिर में जाने वाले समस्त आराधना करने वालों के लिये बड़ी भयानक बात थी। यह परदा महापवित्र स्थान को मंदिर के अन्य भागों से एकदम अलग करता था। यहां परमेश्वर की उपस्थिति होती थी। जहां सिर्फ याजक ही जा सकते थे। और वहां प्रवेश करना परमेश्वर की पवित्र उपस्थिति में जाना होता था। ऐसा आम आदमी नहीं कर सकता था।

● यीशु की मृत्यु से परदा फटना तथा महापवित्र स्थान का खुल जाना, अविश्वासियों के लिये एक आतंक था। उनके लिये यह अनसुलझा सवाल बन गया। यह यहूदी विश्वास व व्यवस्था पर सीधा आक्रमण था। महापवित्र स्थान पर जाने के लिये अब याजकों की आवश्यकता नहीं थी ।

● अब विश्वासी मसीहियों के लिये सीधे परमेश्वर की उपस्थिति में जाने का द्वार खुल गया। यह मृत्यु द्वारा महापवित्र स्थान में हर एक के जाने का मार्ग बन गया। यह एक नया व जीवित प्रबंध प्रारंभ हो गया।

★ अनपेक्षित प्रभाव

सूबेदार जो पूरी क्रूसीकरण का संचालक था उद्धार के महान प्रभाव से बच नहीं पाया वह कायल हो गया, और मान लिया यीशु परमेश्वर का पुत्र है।

"जो सूबेदार उसके सामने खड़ा था, जब उसे यूं चिल्लाकर प्राण छोड़ते देखा तो उसने कहा, "यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र था।" (मरकुस 15:39)

उस सूबेदार को कई अपराधियों को क्रूस पर चढ़ाने का अनुभव रहा होगा। पर यीशु की पूरी क्रूसीकरण योजना में हुई बातों को सुनकर - देखकर उसे अवश्य कुछ अलग अनुभव हुआ होगा। यदि उसने यीशु के मुंह से निकली बातों को सुना होगा तो कई सवाल उसके मन में भी आये होंगे।

परन्तु एक बात उसे संतुष्ट की वह यह थी कि उसने जोर से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिये। लेकिन एक व्यक्ति जिसके प्राण जाने वाले हैं वह इतनी जोर से कैसे चिल्ला सकता है यह बात उसे आश्चर्य में डाल चुकी थी और उसे कुछ और समझ में आ गया। इतनी तेज चिल्लाने के लिये जिसके पास सामर्थ थी वह इतनी जल्दी प्राण कैसे छोड़ दिया! मसीह को सम्मान देते हुये, और जिन्होने उसे गालियां दी उनको लज्जित करते हुये उसने कहा कि "ये सचमुच परमेश्वर का पुत्र था" ऐसा क्यों कहा ? 

यीशु के जीवन में उसने इतने समय के बीच क्या देख लिया? 

• यीशु ने यही बात तो कही थी कि वह परमेश्वर का पुत्र है!! यही दोष तो उस पर लगाया गया था। (मत्ती 26:57-65) 

काइफा ने उसे यही पूछा था तथा निश्चित कर लिया था। और उसे दोषी करार दिया था। यहां तक कि क्रूस पर चढ़ाये जाने के बाद आने जाने वाले कहते थे" यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो क्रूस पर से नीचे उतर आ। डाकू भी यही कहके उसकी निन्दा करते थे।

• दूसरी बात यह हो सकती है कि वह स्वर्ग का सर्वप्रिय व्यक्ति था । इसीलिये उसे मरते समय यह सम्मान मिला। वह स्वर्ग से आया था। वह परमेश्वर तथा पृथ्वी के बीच एक विशेष माध्यम था । मृत्यु के समय में भी, दुख व निन्दा के बीच में भी, बड़ी सामर्थ के साथ अपने को परमेश्वर का पुत्र घोषित कर दिया !

भीड़ में विशेष रूप से यीशु से जुड़ी हुई महिलाओं की उपस्थिति थी, पुरूषों का पता नहीं था (मरकुस 15:40, 41) उनका नाम भी लेखक ने लिखकर, दुख के साथ यीशु के साथी होने का प्रमाण दिया है। मरियम मगदलिनी (जिसमें से यीशु ने सात दुष्ट आत्मायें निकाली थीं) मरियम (क्लोपस की पत्नी), याकूब और योसेस की माता मरियम तथा यीशु की माता वहां थी। वे गलील से यीशु के साथ-साथ थी । जो दूर खड़ी उसे देख रही थी।

यीशु ने आश्चर्यकर्म किया, लोग साथ थे, यीशु ने हजारों को खाना खिलाया...लोग उसके साथ थे..... लेकिन जब यीशु ने क्रूस पर दुख उठाया कोई साथ नहीं था। धन्य हैं ये महिलायें!


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