तीसरा वचन-हे नारी, देख तेरा पुत्र ! यूहन्ना, देख तेरी माता!

Krus Vani | क्रूस वाणी | तीसरा वचन | हे नारी, देख तेरा पुत्र

यीशु ने सबसे पहले अपराधियों के लिये क्षमा की प्रार्थना की। उसके बाद साथ में लटकाये गये डाकू की प्रार्थना का उत्तर दिया। इस तरह उसने दो बड़े दरवाजों को खोल दिया..... अपराधियों के पाप कैसे भी हों प्रभु उनकी अज्ञानता को देखकर क्षमा दे सकता है। यदि डाकू भी प्रार्थना करे तो प्रभु उसके लिये स्वर्ग का दरवाजा खोल सकता है।

★ मां मृत्यु के समय साथ थी !

"परन्तु यीशु के क्रूस के पास उसकी माता और उसकी माता की बहन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थीं ।"

    ऐसे समय में उन्होंने, जितना पास वे आ सकती थीं वहाँ आ के खड़े होने का प्रयास किया होगा। चूंकि वहां सिपाही थे...... उन्होंने उनको ज्यादा पास नहीं आने दिया होगा...लेकिन उनका यहां पर यीशु के दुख के समय पास रहना उनके सच्चे प्रेम व साहस को दर्शाता है। इस समय चेले जो 31⁄2 वर्ष तक यीशु के साथ थे, उनमे से यूहन्ना को छोड़ कोई भी वहाँ दिखाई नहीं दिया । परन्तु इतनी क्रूरता तथा निर्दयता का व्यवहार करने वाले रोमी सिपाहियों की उपस्थिति में क्रूस के पास ये महिलायें खड़ी थीं। इस दृश्य की भयानकता तथा इन सिपाहियों की क्रूरता का उन्हें कोई डर नहीं था । सच्चा साथ तभी मिलता है जब कोई दुख के समय साथ हो।

कब से ये क्रूस के पास थीं यह स्पष्ट रूप से बताया नहीं गया है। परन्तु क्रूस का जो वर्णन हम पढ़ते है हम अंदाजा लगा सकते हैं कि कई घंटो से ये महिलायें यीशु के पास खड़ी थीं। ये अंतिम क्षणों का साथ बहुत ही महत्वपूर्ण था ।

★ यीशु के साथ इस तरह का सताव महिलाओं के लिये अत्यन्त दुखद था !

    विशेष रूप से कुंवारी मरियम के लिये यह सबसे ज्यादा दिल तोड़ने वाला दृश्य था। यहां भी इस दृश्य में हम एक भविष्यद्वाणी को सच होते हुये देखते हैं जो शमौन ने की थी।

"वरन तेरा प्राण भी तलवार से वार-पार छिद जायेगा-इससे बहुत हृदयों के विचार प्रगट होंगे।"

यीशु के साथ हो रहा एक एक मजाक उसका दिल तोड़ रहा था, एक एक चोट... उसको चोट पहुंचा रही थी। वह क्रूस पर तड़फ रहा था...और वह उसके सामने आंसू बहाती हुई टूटती जा रही थी। चोट यीशु को लग रही थी, लहू मरियम का बह रहा था जो कुछ भी यीशू के साथ क्रूरता की जा रही थी । उसे देखकर पास खड़ी महिलाओं का दिल छलनी हो रहा था। बाइबल के इतने कालों के अंतराल में ऐसा दृश्य पहले किसी लेखक ने प्रस्तुत नहीं किया था।

इन महिलाओं ने इस घड़ी में यीशु का जो साथ दिया और जो उनका व्यवहार रहा वह अत्यंत प्रशंसनीय है। विशेष रूप से माता मरियम क्रूस के पास कितनी चुप थी, वह अपने हाथ नहीं उठा रही थी, बाल नहीं नोच रही थी, चिल्ला के रो नहीं रही थी, कपड़े नहीं फाड़ रही थी, परन्तु बड़ी शांति के साथ क्रूस के पास खड़ी थी, साथ में खड़ी अन्य महिलायें भी चुप थीं। यह सच्चाई है उन्हें ईश्वरीय सामर्थ मिली थी तभी उनमें इतनी परिपक्वता थी। मरियम को सच्चा विश्वास था....कि उसका बेटा मर भी जाये तौभी वह जी उठेगा। जब तक हम परखे नहीं जाते तब तक हम यह जान नहीं पाते कि "मेरा अनुग्रह तुम्हारे लिये बहुत है।" 

★ बेटे ने मां की चिन्ता की ।

मृत्यु के समय भी यीशु मां की चिंता करना नहीं भूला । हो सकता है कि युसूफ की मृत्यु बहुत पहले हो गई हो और यीशु ने ही अब तक अपने मां की चिन्ता की हो। उसी के सहारे मां जी रही होगी। अब उसका एक मात्र सहारा धीरे धीरे मौत की ओर बढ़ रहा था। उसने उसे बहुत देर से खड़ी हुई रोते देखा था। अभी मां के दिल में क्या गुजर रहा था उसे वह स्वयं अपने दिल में महसूस कर रहा था और उसने यूहन्ना को पास खड़े देखा। सो उसने अपनी प्रिय मां तथा प्रिय चेले के बीच एक नया संबंध स्थापित कर दिया। उसने अपनी मां से कहा : नारी देख तेरा पुत्र !

इस पुत्र को अब से आगे तुझे मां का प्यार देना होगा। और यूहन्ना से कहा : देख तेरी माता

    अब मेरी मां को देखना तुम्हारी जिम्मेदारी है। इस विशेष समय को दोनों कभी नहीं भूल सकते.... उसी समय दोनों ने अपने आपको एक दूसरे को सौंप दिया। यूहन्ना, एक बेटे का रूप लेकर मां को अब अपने घर ले गया। यहां हमे एक बात स्पष्ट दिखाई देती है.... यीशु का दर्द उस पर इतना हावी नहीं था कि उसे यह याद नहीं आता कि अब मां का क्या होगा ? उसे पता था..... मां के पास न सोना, चांदी, न जायदाद, कुछ भी नहीं है जो आगे उसका सहारा होता और यीशु के पास भी कुछ ना था कि वह मां के लिये कुछ छोड़ जाता । यही बेहतर था कि उसने अपनी मां को अपने ही एक चेले के हवाले कर दिया। और चेले ने भी सहर्ष यीशु के अनुरोध को स्वीकार कर लिया ।

"नारी" हमारे भारतीय संदर्भ में मां को संबोधित करने वाला शब्द नहीं है, ऐसा हम कह नहीं सकते। कई धर्म वैज्ञानिक इसका यह अर्थ बताते हैं कि "मां" शब्द अगर उस समय मरते हुये यीशु के होठों पर आते तो मां में बहुत गहरी तड़प उठती.... उसका दिल छलनी हो जाता.....धीरज का बांध टूट जाता, शायद वह वहां से नहीं जा पाती ।

उसने उसका ध्यान अपने पर से हटाकर यूहन्ना पर डालने को प्रेरित किया जिससे उसकी मां को जरा तसल्ली मिल जाये. कि कोई तो है जो उसका साथ देगा... जिसे उसका बेटा उसके, लिये नियुक्त कर रहा था।

उत्साहित शब्द

एक अच्छे अंत के लिये यीशु ने ये उत्साह से भरे शब्द कहे ताकि उन्हें अकेलेपन का बोध ना हो। जाने के समय कहे जाने वाले ऐसे शब्द, जीवन भर के लिये उत्साहित करते रहते हैं। भले एक दुख की घड़ी आ गई पर उसके बाद सुख की घड़ी आ सकती है। जहां एक तसल्ली समाप्त होती है वहां प्रभु दूसरी तसल्ली भेज देता है। यह तसल्ली ऐसे स्थान से आती है जिसके विषय शायद हमने सोचा ही न हो। विश्वासी के लिये अगर एक सोता सुख जाता है तो परमेश्वर दूसरा खोल देता है।

कर्तव्य

यीशु द्वारा मरियम के लिये प्रबंध करना, एक अच्छे बेटे के कर्तव्य का प्रतीक है। अपने दुख से बढ़कर, मां के भविष्य की चिंता करते हुये, ऐसा प्रबंध करना कई बेटों के लिये चुनौती है। यहां यीशु कई बच्चों को शिक्षा दे रहा है कि वे अपने माता-पिता की चिन्ता करें। पूरी सामर्थ के साथ उनकी देखभाल करें। बूढ़े माता-पिता का सहारा बने। जब दाऊद परेशानी में था, उसने माता-पिता की चिन्ता की, उनके लिये उसने आश्रय ढूंढ़ा।"

'दाऊद ने... मोआब के राजा से कहा, मेरे पिता को अपने पास तब तक आकर रहने दो, जब तक कि मै ना जान

कि परमेश्वर मेरे लिये क्या करेगा।"

बच्चे अपने माता-पिता की मृत्यु तक अपनी योग्यतानुसार जो कुछ आवश्यक है, उनके लिये उपलब्ध करायें। जब तक वे जीवित है, उन पर दया दिखायें

भरोसा

यीशु को पूर्ण भरोसा था कि उसका चेला मां की चिन्ता करेगा वह बेटा बनकर उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा

"जितने लड़कों ने उससे जन्म लिया उनमें से कोई ना रहा जो उसकी अगुवाई करके ले चले, और जितने लड़के उसने पाले पोसे उनमें से कोई ना रहा जो उसके हाथ को थाम ले।" यशायाह 51:18

यही तस्वीर यहां दिखाई दे रही है । वचन पूरा हुआ। वचन बताता है कि यीशु के भाई बहन थे । परन्तु उनकी विस्तार से चर्चा कहीं नहीं है। अब मां का एक ही सहारा यीशु था ... वह भी अब मौत की राह पर था। परन्तु वहीं पर एक चेले ने यीशु की मां को अपनी मां के रूप में पाया... जो प्रभु यीशु के पास, बहुत ही पास था। मां को देखने की जिम्मेदारी के विषय बाइबल बताती है:

"अपने जन्माने वाले की सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाये, तब भी उसे तुच्छ ना जानना' (नीतिवचन 23:22)

• यीशु ने यह जिम्मेदारी यूहन्ना को देकर उसे सम्मानित किया। यह यूहन्ना की गवाही है, यीशु को वह इतना प्यार करता था कि यीशु के बाद मरियम को मां कहने और उसे संभालने का आदर यूहन्ना को ही मिला । यदि यीशु जो सब कुछ जानता है यह नहीं जानता कि यूहन्ना उसे कितना प्यार करता है तो वह कभी भी यूहन्ना को यह जिम्मेदारी नहीं देता। यीशु द्वारा किसी पद पर या कार्य के लिये नियुक्त किया जाना अत्यंत सम्मान की बात है। और संसार में उसकी रूचि या इच्छा की जिम्मेदारी लेना ईश्वरीय सम्मान है, जो सम्मान मृत्यु उपरान्त भी बना रहेगा ।

• देखभाल की जिम्मेदारी को यूहन्ना ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उसने देर नहीं की । यह नहीं सोचा कि घर वाले क्या कहेंगे। इसका खर्च कैसे चलाऊँगा, मेरी अपनी भी जिम्मेदारी है... बिना किसी शिकायत के वह मरियम को उसी समय अपने घर ले गया। जो प्रभु यीशु से प्यार करते हैं जो यीशु को प्रिय है...उसकी सेवा के लिये जब भी कोई अवसर आता है वह सहर्ष तैयार रहते हैं ।

• नायसिफोरस के इतिहास के अनुसार मरियम यूहन्ना के साथ यरूशलेम में ग्यारह वर्ष रही, फिर उसकी मृत्यु हो गई ।

क्रूस का यह तीसरा वचन बहुत सारे बच्चों के लिये जिनकी मांये जीवित हैं एक प्रश्न खड़ा कर देता है, क्या हम भी अपनी मां की वैसी चिंता करते हैं जैसे यीशु करता रहा तथा मरने के बाद भी किसी को उसकी चिंता करने के लिये नियुक्त कर गया।

हमारे घरों की क्या कहानी है ? आप जो इस वचन को पढ़ रहे हैं यदि आपकी मां जीवित है तो आप उनकी कैसी चिंता करते हैं ? उनके लिये कितना सोचते हैं ? मैने आज भी कितनी विधवा मांओं को अपने बेटो को याद करते हुये रोते देखा है। एक कहावत मैने अपने प्रिय गुरू रेव्ह एन.एस. राव से सुनी है... 

"सन इज सन टील ही मेरीस

डॉटर इज डॉटर ऑल थ्रू हर लाइफ"

"बेटां जब तक शादी नहीं करता बेटा होता है परन्तु बेटी जीवन भर बेटी बनी रहती है।" आपकी सच्चाई क्या है ? क्या आप आज बोल सकते हैं, "मां मैं तूझे प्यार करता हूँ ।"

और देखें :