DCYM  के बारे

आइए हम सब DCYM  के बारे में जानें 

मसीहत के प्रवेश के 45 साल के बाद आर्थात 23 मार्च 1890 के आस पास हमारा डायसिस आस्तित्व में आया, और हम इस डायसिस को कायम रखने के लिए काई  सारे बड़े बुजुर्गों ने आपना महत्वापूर्ण योगदान दिया । मसीहत के प्रवेश के 104 साल बाद और डायसिस के स्थापना के 60 साल बाद 1949 ई. में DCYM की स्थापना की गई, इतनी वर्षो में हमारी अगुवों ने इस संस्था को बनाया, बढ़ाया, आगे बढ़ाया और अब हमारा कर्तव्य है इस संस्था को और आगे बढ़ाएँ। डायसिस के हारेक युवाओ का कर्तव्य है कि प्रभु यीशु ख्रीस्त की गवाही को दुनियां की छोर तक ले कर जाएं | आज हमारे इस संस्था का 74 वां वर्ष पूरा हो चुका है और आज हम 75वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। हमारे डायसिस के प्रति हमारी संस्थान के प्रति हमारी क्या योगदान होगा इस पर हम चर्चा करेंगे-


सबसे पहले DCYM का परिचय 

छोटानगपुर डायसिस के अंतर्गत यह एक संघ कह लें या संस्था कह लें या संगठन कह लें,  जिसे हम DCYM के नाम से जनते हैं। और इस संस्था द्वारा जो हमारा महत्वपूर्ण कार्य है कि हमारे डायसिस के युवाओं को आत्मीक क्षेत्र में समाजिक क्षेत्र में नैतिक क्षेत्र में आगे बढ़ाएँ। 

1947 में जब देश आजाद हुआ तो उस नए देश में जो भारत है, बहुत ही उथल पुथल समय था उस समय सब कुछ नया था और हमारे डायसिस के अगुवों ने इस उथल पुथल समय में अपने मन में ठाना कि हम युवाओं को संगठित कैसे करें। हमारे डायसिस के युवाओं के लिए उनके आत्मीक उन्नति,समाजिक उन्नति की देखभाल में पहल की गई,कि वे सभी संगठित रहें । 

और इसका पहला श्रेय जाता है मनोहारपुर के तात्कालिन पाद्री सहब Rt.Rev. सदानंद अविनाश विश्राम दिलबर हंस (1957-1975) जो आगे चालकर डायसिस के छठे  बिशप भी बने,पहला देशी बिशप भी बने, हमारे डायसिस के और इसके साथ ही  संत अगस्टीन उच्च विद्यालय के शिक्षक श्री जोन बोईपाई उनके साथ थे जो आगे चलकर पुरोहित भी बने, और उनके साथ तीसरा सदस्यता श्री सत्येन्द्र पात्रों (1975-1979) जो आगे चलकर डायसिस के विशप भी बने, यूँ तो युवाओं को संगठित करने का कार्य आजाद होने से पहले ही पहल की गई थी।  1920 और 1921 में छोटानागपुर के तीसरी विशप Rt. Rev. एलेक्स वुड (1919-1926) ने युवाओं को संगठित करने के लिए स्काउट गाईड का गठन किया।  और इस स्काउट गाइड का गठन में उनकी रूची इसलिए थी कि वो सेना में जयपाल के रूप में काम करते थे. उन्होंने इस स्काउट गाइड में 50 युवाकों को संगठित किया और उन्होंने गाईड किया 1921 में पटना में ब्रिटिश राजकुमार के सामने ये 50 युवकों ने अपना बहुत सुन्दर प्रदर्शन किया।

इसके बाद डायसिस के चौथे विशप  Rt. Rev. केनेथ केनेडी (1926-1936) ने भी युवाओं को संगठित करने कर का आवसर प्रदान किया। उन्होनें संत पॉल स्कूल कैंपस में SPG मिशन इंस्टीट्यूट की स्थापना की और उस भावन में युवाओं के लिए खेल कुद से लेकर और बहुत सारी बातों को रखा, और शिक्षित हो और नाना प्रकार की बातों को रखा। चाहे वो समाजिक हो या नैतिक हो या राजनैतिक स्तर का हो, या देश के प्रति हो . वहाँ पर बहुत सारे माटेरियाल भी रखा ताकि बच्चे,जवान शिक्षित होने पाए। इसके अलावा अन्य कलीसिया के GEL कालीसियों में भी युवाओं को संगठित किया जा रहा था | और उस समय और भी संस्थाएँ काम कर रही थी, जैसे YMCA, SCM इसके अंतर्गत भी युवाओं को संगठित किया जा रहा था। और युवाओं ने भी और बहुत सारे कालिसियाओं के कार्य को अंजाम दे रहे थे। लेकिन इन संस्थाओ ने YMCA या SCM यहाँ केवल एजुकेटेड बच्चे को ही सदस्यता दी जाती थी, इसलिए हमारे अगुवों ने सोचा कि हमलोग ऐसे संस्था का गठन करें जिसमें सभी मसीही युवा-युवती सदस्यता ग्राहण कर सके।

Introduction Of Dcym | DCYM का परिचय और उद्देश्य


जहाज टुकु का प्रचालित होना

DCYM संस्था की स्थापना 1949 में मनोहरपुर में पादरी दिलबर हंस उस समय पदस्थापित थे, उनके मान में विचार आया कि कैसे हम युवाओं को संगठित करें और उन्होंने उन्हीं दिनों में संत अगस्टीन उच्च विद्यालय में जॉन बोईपाई सर जो काम करते थे, उन दोनों मिलकर सोचने लगे कि हम युवाओं को कैसे संगठित करें, जिसे कि हमारे मसीही युवा अत्मीक क्षेत्र में नैतिक क्षेत्र में समाजिक क्षेत्र में धार्मिक क्षेत्र में राजनैतिक क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे। उनके मान में ये बातें हमेमा आ रही थी, तब मनोहरपुर जो हमारे पेरिस है, जो नदी से सटा हुआ है। नदी किनारे बैठ कर मनन करते थे कि कैसे हम युवाओं को संगढित करेंगे,और आगे चलकर जिस चट्टान पर बैठे थे उस चट्टान का नाम जहाज टुकु के नाम से प्रचालित हो गया। 

DCYM की स्थापना का विचार

DCYM की स्थापना का विचार मनोहरपुर में हुआ था, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि मनोहरपुर में DCYM गर्व में आया था। इसी दर्शन के साथ Rev. दिलबर हंस और Rev. पत्रों और शिक्षक जॉन बोइपाई जो उस समय के तात्कालिन बिशप  महामान्यवार बिशप जॉर्ज नोवेल हॉल (1936-1957) के साथ मिले और इस संगठन को स्थापना करने की अनुमती मांगी। अनुमति मिलने के बाद ये तीनों महापुरुष ऐसे स्थान को खोजे जहाँ पर एक शिविर का आयोजन किया जा सके, भीड़ भड़ाका शोर शालुका से अलग, तो उन्होंने लोहारदागा को चुना . 1949 ई. मे पहला शिविर था लोहारदागा में और शिविर में सभी जगह से युवाओं को बुलाया गया, राँची, हाजारीबाग चाईबासा और अन्य जगह के युवा वहाँ पर आए.और सदस्यता में कुछ लोगों का नाम मिला है उसका नाम है एनेम होरो (कच्छप), बीड़ा डीन, लीलावती टूटी (बलमुचु), जेम्स बरला, अजीत कुमार नंदी ये इस सम्मेलन में 15-16 युवाओं ने भी भाग लिया . और ये युवा भी थी थे जो सक्रिय रूप से YMCA या SCM के साथ जुड़े हुए थे, और मसीह का कार्य को आंजाम दे रहे थे बड़ी उत्साह के साथ इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। और इस प्रकार दुर्गापूजा की छुट्टी में कार्यक्रम रखा गया और इसकी नींव रखी गई। DCYM की नींव लोहरदगा में पड़ी। 


DCYM की  स्थापना का श्रेय

बिशप हंस बिशप पात्रो Rev. जॉन बोईपाई और साथ ही लोहारदागा में तात्कालीन Rev. जोशुआ खालखों, उसके लोग, मण्डली के लोग भी भामिल थे. और काफी लोगों ने योगदान भी दिए। इस संगठन में संगठन की नींव पड़ी। और इस संगठन को सुचार रूप से चलाने के लिए नए कमिटी का निर्माण किया गया जिसमें इसका अध्यक्षता में  सभापति-श्री जेम्स बरनाबस हेम्ब्रोम, उपसभापति-अजीत कुमार नंदी, सचिव-बीड़ा डीन, खजांची- एनेम होरो को बनाया गया। आज जो इस संगठन का नाम DCYM का नाम से जान रहे हैं लेकिन पहले DCYM नहीं था पहले युवा संघ के नाम से प्रचालित हुआ और आज भी युवा संघ के नाम से जाना जाता है। 

DCYM कैसे बना

DCYM का जन्म अर्थात स्थापना नामकरण के संबंध में Rt. Rev. जकर्याह जेम्स तेरोम (1986-2006) बड़ा सुन्दर वाक्य को कहते हैं मनोहरपुर गर्भ में आया,लोहरदगा में इसका जन्म हुआ और हाजारीबाग में इसका नामकरण हुआ1949 में पहला शिविर समाप्त के बाद सबलोग निर्णय किया कि अगले साल दुर्गा पूजा की छुट्टी में सबलोग मिलेंगे और इस शिविर को आगे बढ़ाएँगे। उसके बाद फिर से 1950 ई० में कैंप का आयोजन किया गया। 

और यहाँ पर इस शिविर का नाम रखा गया। सबसे पहले ये युवा शिविर के रूप में जाना जाता था सर्व समिति से यह तय किया गया कि छोटानागपुर युवक अंदोलन, फिर से बाद में छोटानागपुर डायसिस युवा आंदोलन DCYM 1949 से शुरू की गई और उस शिविर में 143 प्रातिभागीयों ने भाग लिया और इस शिविर में कोलकता के Rev. S.K. मंडल के साथ कई सारे युवाओं ने मिश्रकित की और ये प्रोग्राम लगातर चालते आया कि हर साल दुर्गा पुजा से आवसार पर ही मानाया जाए। और संपन्न हुआ और हमलोग Annual Camp के नाम से जानते हैं। 

25वाँ जुबली शिविर (राँची) (1973) राजत जयंती राँची में संपन्न हुआ, 50वाँ जुबली शिविर चाईबासा में संपन्न हुआ (50th golden Jubilee) 75 वर्षीय डायमंड जुबिली का आगाज मनोहरपुर (2023) में दुर्गा पूजा के छुट्टी के आवसर पर संपन्न हुआ और अब हमें  आगाज से अंजाम तक भी जाना है।  और इसका समय भी आ पंहुचा है इसलिए 75 वर्षीय डायमंड जुबली शिविर का अंजाम राँची में  जबरदस्त तरीके से होने जा रहा है बड़ी धूम धमाका के साथ में जिसमें सभी DCYM के सदस्य सन्डे स्कूल के बच्चे भी शामिल हो सकते हैं . इसके अलावा और कोई भी शामिल हो सकते हैं। 


DCYM CAMP कब कब नहीं हुआ 

DCYM के 75 वर्ष के इतिहास में कुछ वर्ष ऐसे भी हैं जिसमें कैंप का आयोजन नहीं हो पाया जिसका कुछ छोटी छोटी कारण भी है।

1994, 2015, 2016, 2019, 2020, 2021 में नहीं हो पाया था

  • 1994 में (CNI रजत जयंती) CNI का 25 वाँ वर्षगांठ था बहुत बड़ा शिविर का आयोजन किया गया था। सिनोडिकल शिविर का आयोजन किया गया था,और इस शिविर में हमारे डायसिस से भी बहुत सारे प्रतिभागी आए हुए थे,उन्होंने भी उनका प्रदर्शन किया श्री रविकांत लकड़ा की अगुवाई में (12 सदस्य) ।
  • 2015 में हमारे डायसिस के 125 वाँ वर्ष जयंती  के कारण शिविर का आयोजन नहीं हो पाया। 
  • 2016 में भी नहीं हो पाया था क्योंकि तैयारी भी नहीं हुई थी। 
  • 2019 में डायोसिस महासभा के कारण शिविर का आयोजन नहीं हो पाया। 
  • 2020-2021 में कोरोना काल के कारण शिविर का आयोजन नहीं हो पाया था। 

मेरी सलाह 

साथियों मैं माफ़ी चाहता हूँ लिखने में अगर कहीं पर गलत हो गया होगा तो सुधर कर पढ़ लेना। 

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