साधारण व्यक्ति जिसने हासिल की असाधारण सफलता 

आइए बात करते हैं एक ऐसे शख्स की, जिसने श्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार और काले धन को खत्म करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद छोटे दुकानदारों से लेकर बड़े लेन-देन तक का आसान रास्ता मुहैया कराने के लिए साधारण होते हुए भी असाधारण सफलता हासिल की है। सबसे तेजी से जो नाम उभरा है वह पेटीएम है, और इसके संस्थापक श्री विजय शेखर शर्मा हैं। नोटबंदी से पहले भी मूवी टिकट से लेकर ऑनलाइन खरीदारी तक हर चीज के लिए पेटीएम की एक अलग पहचान थी, लेकिन इसके फाउंडर विजय शेखर शर्मा के बारे में अभी भी बहुत कम लोगों को जानकारी है। आज जब विजय शेखर शर्मा पेटीएम के जरिए जाने-माने अरबपति बिजनेसमैन बन गए हैं तो आम लोगों में उनके बारे में जानने की दिलचस्पी काफी बढ़ गई है।

                                                            

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विजय शेखर का रंगीन सपना और जुनून

दरअसल, विजय शेखर शर्मा के उत्थान की कहानी किसी परियों की कहानी से कम नहीं है, जो आंखों में रंगीन सपने लिए आसमान में उड़ती है और देखते ही देखते विशाल आसमान को नाप लेती है। विजय शेखर शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक साधारण परिवार में हुआ था। घर का खर्च बहुत बड़ा था, जो उनके पिता की मामूली सी नौकरी से पूरा नहीं हो पाता था। परिवार की इस हालत ने विजय शेखर शर्मा को बागी बना दिया। उसने उसी समय निश्चय कर लिया कि जब तक वह अपने घर के गरीबों को दूर करके एक बड़ा और प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं बन जाता, तब तक चैन से नहीं बैठेगा। इस तरह की जिद ने एक विनम्र परिवार के साधारण लड़के विजय शेखर शर्मा को एक असाधारण इंसान बना दिया। आज वह पेटीएम और वन97 जैसी ऐप बेस सॉफ्टवेयर कंपनी के मालिक हैं। उनकी गिनती दुनिया के सफल और संपन्न लोगों में होती है।


जीवन में आगे बढ़ने के लिए इच्छा और जुनून का होना जरूरी है


अपनी सफलता को साझा करते हुए विजय शेखर शर्मा कहते हैं, "काम ही काम है विशेष रूप से केवल मानवीय इच्छा है। इच्छा इच्छा तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, इसे अपने आप में एक जुनून की जरूरत है। अगर आप अपने अंदर जुनून पैदा कर सकते हैं, तो आप हासिल कर सकते हैं।" वह सब कुछ जिसे हासिल करना लगभग असंभव माना जाता है।"



विजय शेखर के भाई बहन और उनके शौक


विजय अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे, दो बहनें बड़ी थीं और एक भाई, जो छोटा था। रोजी रोटी की समस्या के कारण पिता दिन भर काम में व्यस्त रहते थे, इसलिए उनके पास इतना समय नहीं था कि वे समय बिता सकें। उसके बच्चों के साथ। ऐसे में विजय ने अपनी बड़ी बहनों को अपना दोस्त और टीचर बना लिया। जब बहनें पढ़ने बैठतीं तो विजय भी उनके साथ गेम खेलते हुए पढ़ने बैठते। इस तरह पढ़ाई भी एक खेल बन गई, जब बहनें पढ़ने के लिए स्कूल जातीं तो विजय उनके बस्ते से लटक जाता और मां से जिद करता कि उसे भी स्कूल जाना है। समय आने पर वह स्कूल भी चला गया। परिवार सादा था, इसलिए उनकी शिक्षा भी हिन्दी माध्यम के सरकारी स्कूल में हुई। आज भले ही यह माना जाता है कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़े बिना जीवन में महान व्यक्ति नहीं बन सकते, लेकिन पढ़ने-लिखने के शौकीन विजय ने इस गलतफहमी को भी दूर कर दिया कि हिंदी पढ़ने वाला महान व्यक्ति नहीं बन सकता।


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अंग्रेजी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई बनी पहाड़ और हुआ एक सव्जेक्ट में फेल  


जिस समय विजय की शिक्षा दीक्षा चल रही थी, उस समय प्रायः सभी परिवारों में यह बात प्रचलित थी कि यदि बच्चों को अच्छी नौकरी करनी है तो उन्हें चिकित्सा या इंजीनियरिंग की शिक्षा देना आवश्यक है। इसी सोच के चलते उनके पिता ने उन्हें इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिला दिया, चूंकि विजय ने हिंदी माध्यम से पढ़ाई की थी, इसलिए उन्हें अंग्रेजी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पहाड़ से भी कठिन लगी. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

अपने साहस और बुद्धिमत्ता के बल पर उन्होंने दिल्ली कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग की परीक्षा सम्मानजनक तरीके से उत्तीर्ण करने का प्रयास किया। उन्होंने अंग्रेजी का ज्ञान सीखने के लिए इंटरनेट से लेकर लाइब्रेरी तक की मदद ली। इंजीनियरिंग की पढ़ाई को लेकर उनके माता-पिता के भी बड़े सपने थे। लेकिन जब परीक्षा का परिणाम निकला तो विजय और उसके परिवार के सदस्यों पर बिजली की तरह अफरातफरी मच गई। इंजीनियरिंग के पहले साल में एक विषय में फेल होने के कारण उसके माता-पिता अपने सपने को पूरा होते नहीं देख पाए।


विजय शेखर के सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ 


विजय को स्वयं इस बात का आभास हो गया था कि अंग्रेजी में कमजोर होने के कारण वह इंजीनियरिंग की शिक्षा अच्छे रैंक से पास नहीं कर पाउँगा। फिर भी उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने का फैसला किया। उसकी आंखों के सामने दो जवान बहनों के चेहरे घूम गए। उनकी शादी की जिम्मेदारी भी उनके सिर पर थी। इस तरह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को महसूस करने के बाद पहली बार उन्हें लगा कि उन्हें पढ़-लिखकर कुछ करना चाहिए। उन्होंने अब तक कंप्यूटर में दक्षता हासिल कर ली थी और साथ ही एक में छपे विज्ञापन को पढ़कर नौकरी के लिए आवेदन किया था। साक्षात्कार और चयन किया। जब नौकरी ज्वाइन करने की बात आई तो विजय ने कहा कि वह ऑफिस आकर काम नहीं कर सकता क्योंकि उसे अपनी क्लास अटेंड करनी है। उन्होंने कहा कि अगर आपको नौकरी नहीं करनी है तो मेरा समय क्यों बर्बाद करें? विजय ने उससे माफी मांगी और कहा कि तुम तो अपनी वेबसाइट बनवाने के लिए मैं ऐसा घर से भी करें। दिलचस्प बात यह है कि वह नौकरी की तलाश में गया था और एक व्यवसाय के साथ लौटा। बिजनेस मिलने के बाद विजय अपने दोस्त हरेंद्र के साथ हॉस्टल में ही काम करने लगा। विजय ने अपने दोस्त हरेंद्र के साथ मिलकर बिजनेस मॉडल तैयार किया। मॉडल यह था कि जब भी कंप्यूटर से संबंधित किसी नौकरी का विज्ञापन आता तो दोनों वहां इंटरव्यू के लिए जाते और ज्यादातर जगहों से नौकरी के बदले बिजनेस लाते।


बिजनेस मॉडल में सफलता

उनका बिजनेस मॉडल भी काफी सक्सेसफुल रहा। इंजीनियरिंग के पहले साल में एक विषय में फेल होने के बाद अगले साल पढ़ाई भी कर रहा था और बिजनेस से कमाई भी कर रहा था। बिजनेस बढ़ने के बाद उन्होंने अपने सभी सहयोगियों को काम में शामिल करने की कोशिश की, लेकिन उनके दोस्तों ने भी यह कहकर मना कर दिया कि अगर आप ठीक से इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं करना चाहते हैं, तो न करें। हमें अच्छे से पढ़ना है और पास होना है। दोस्तों के मना करने पर भी विजय अपने धंधे में लगा रहा।


पत्रिकाएँ पढ़कर उनकी आँखें खुल गईं


अचानक एक दिन उन्हें फोर्ब्स और फॉर्च्यून जैसी अच्छी अंग्रेजी पत्रिका कम कीमत में मिल गई। जब उन्होंने उन पत्रिकाओं को पढ़ा तो उनकी आंखें खुल गईं। उन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्हें पता चला कि दुनिया में ऐसे कई प्रसिद्ध अरबपति व्यवसायी हैं जो पहले बहुत गरीब हुआ करते थे। ऐसे ही लोगों की प्रेरक कहानियां पढ़कर विजय की आंखें भी कई तरह के सपनों से भर गईं।

विजय को माता-पिता ने डांटा

दरअसल, 1996-97 वह समय था जब कम उम्र में ही कई बड़े लोग कंप्यूटर और इंटरनेट की दुनिया में आगे आ रहे थे। बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स के बारे में जानकर उन्हें यकीन हो गया था कि अगर ऐसे कॉलेज ड्रॉप आउट सिलिकॉन वैली में इतना कुछ कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं कर सकते? इसके बाद उन्होंने अपना सपना तय किया कि उन्हें भी कंप्यूटर और इंटरनेट की दुनिया में कुछ बड़ा काम करना है। उन्होंने सिलिकॉन वैली की तरह ही 'XS Crop' नाम से एक कंपनी बनाई और अपना बिजनेस कार्ड प्रिंट करवाया। उनकी कंपनी ने बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए सॉफ्टवेयर और वेबसाइट बनाना शुरू किया। जब विजय के माता-पिता को पता चला कि वह एक कंपनी बनाकर कारोबार कर रहा है, तो उन्होंने उसे अच्छी टक्कर दी। उन्होंने उन्हें समझाया कि बिजनेस में रिस्क बहुत होता है, इसलिए ऐसा न ही करें तो अच्छा है। माता-पिता द्वारा डांटे जाने पर भी विजय शेखर क्रोधित नहीं हुए। इसके विपरीत उन्होंने प्रण किया कि वे व्यवसाय में सफल होकर स्वयं को सिद्ध करेंगे। इसके बावजूद उसके माता-पिता नहीं माने। उन्होंने कहा कि वह बिजनेस नहीं बल्कि जॉब करें। । पिता के दबाव पर विजय ने अपनी कंपनी बंद कर दी और एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद और तनख्वाह वाली कंपनी में काम करने लगे। नौकरी के कुछ दिनों बाद उनके मन में एक आवाज आई कि वह नौकरी के लिए नहीं बल्कि बिजनेस के लिए बने हैं। आखिरकार उसने नौकरी छोड़ दी और अपने चार दोस्तों के साथ पुरानी कंपनी खड़ी कर दी। इसके बावजूद उसके माता-पिता नहीं माने। उन्होंने कहा कि वह बिजनेस नहीं बल्कि जॉब करें। पिता के दबाव पर विजय ने अपनी कंपनी बंद कर दी और एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद और तनख्वाह वाली कंपनी में काम करने लगे। नौकरी के कुछ दिनों बाद उनके मन में एक आवाज आई कि वह नौकरी के लिए नहीं बल्कि बिजनेस के लिए बने हैं। आखिरकार उसने नौकरी छोड़ दी और अपने चार दोस्तों के साथ पुरानी कंपनी खड़ी कर दी।


विजय ने अपनी कंपनी को 3500000 में बेच दी

  साल 2000 का समय था, जब भारत का इंटरनेट उद्योग बहुत तेजी से विकसित हो रहा था। भारत समेत विदेशों से कई बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में आ रही थीं। इस क्षेत्र में विजय की कंपनी बहुत पुरानी थी, इसलिए एक अमेरिकी कंपनी ने भारत में अपनी जड़ें जमाने के लिए 35 लाख रुपये और एक बड़ा पद देकर उनकी कंपनी खरीद ली। कंपनी लाभ का कुछ हिस्सा साझा करने पर भी सहमत हुई। उस वक्त उनकी उम्र 21 साल थी, इस समझौते के बाद विजय के खाते में काफी पैसा आने लगा। जब उनके पिता को इस बारे में पता चला तो उन्हें दिलचस्पी हुई कि कहीं उनका बेटा कुछ गलत तो नहीं कर रहा है। उसके बारे में कुछ जानकर उसने लोगों को विजय की जासूसी कराई और उसके बारे में पता लगाया। आखिरकार जब उसके पिता को हकीकत का पता चला तो उन्हें अपने बेटे पर गर्व हो गया।


नौकरी करके विजय शेखर की सपना को मर डाला 

उधर अमेरिकी कंपनी के साथ लगभग एक साल तक काम करने के बाद विजय को यह एहसास हुआ की उन्हें पैसे तो मिल रहे हैं, पर उनके वे सपने पुरे नहीं हो प् रहे हैं जिन्हें पूरा करने की उन्होंने जिद की थी।  उन्हें अक्सर यह लगता की अमेरिकी कम्पनी ने इतने सारे पैसे देकर उनको अपनी जंजीरों में जकड़ रखा है और उनके सपनों को मर डाला है। आखिरकार उन्होंने वह कम को छोड़कर एक बार फिर से अपना बिजनेस करने का फैसला शुरू किया। इस बार उन्होंने वन 97 नाम से कंपनी बनाई। उन्होंने खूब मेहनत की। उनका अनुभव भी कम आया और उनकी नई कंपनी तेजी से बढने लगी। 

विजय शेखर परेशानी और विश्वास 

लेकिन ऐसा भी नहीं होता आप आगे बढ़ रहे हों और आपकी रह में बाधाएँ न आयें .विजय के सामने भी परेशानी आई। वह अपने अनुभव को बताते हुए कहते हैं कि हमारी कंपनी बहुत अच्छी चल रही थी लगभग सारी बड़ी कम्पनिया हमारी क्लाइंट लिस्ट में थी। कॉमर्स का कम जानकारी होने के वजह से मैं यह नहीं समझ पाया की कंपनी बैलेंसे शीट पर नहीं,बल्कि आने वाले कैश फ्लो और खर्च के कंट्रोल से आगे बढ़ती है। मैं गलती कर गया। खर्च पर नियंत्रण न करने के कारन साल भर के भीतर कंपनी की हालत ख़राब होने लगी। मैंने लोगों से उधर लेना शुरू किया।धीरे धीरे उधारी 8 लाख तक पहुच गई। इंटरेस्ट रेट 25 फीसदी तक पंहुच गया। मेरी हालत यह हो गई की खाने के नाम पर सिर्फ कोल्ड ड्रिंक और बिस्किट थे और कम के नाम पर लोगों के घर जाकर इन्टरनेट और कम्पुटर फिक्स करने का काम किया। लाखों में खेलने वाला अब रोज 500 रुपये की दिहाड़ी में ही सिमट चूका था  
उस वक्त मन में एक ही बात आती थी कि अगर मै बुरा वक्त झेल गया तो बड़ी कंपनी खाड़ी कर दूंगा और एक बार झेल न पाया तो एक बार फिर से नौकरी करने को मजबूर हो जाऊंगा। 

शेखर की संघर्स और मिली कामयाबी जिसका नाम है PAYTM 


विजय ने बहुत हिम्मत के साथ बुरे वक्त का सामना करते हुए आगे बढ़ने का रास्ता बनाया आगे चल कर उन्होंने अपनी कंपनी की 40 प्रतिसत हिस्सेदारी आठ लाख रुपये में एक परिचित को बेची और उस पैसे की मदद से कंपनी को आगे बढ़ाया। जब कंपनी की दशा अच्छी हो गई तो उन्होंने अपनी इक्विटी 125 करोड़ रुपये में बेच दी अब विजय सफल हो चुके थे और उनके कदम काफी आगे बढ़ चले थे उन्होंने सन 2010 में एक नया ब्रांड लोंच किया जिसका नाम था 'पेटीएम' रखा। उनकी लगन और मेहनत से आज 'पेटीएम' की गिनती संसार की नमी कंपनियों में होती है। आज मात्र 38 साल की उम्र में ही विजय शेखर शर्मा की गिनती अरबपति लोगों में की जाती है।  

मेरी सलाह 

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विजय शेखर शर्मा की कहानी हमें सीख देती है कि आप भले ही साधारण परिवार में जन्म लो पर हौसला असाधारण रखो। जब हौसला असाधारन होगा तो आप अपने बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल करने में सफल हो सकोगे। मुश्किलें तो आपके साहस और धौर्य की परीक्षा लेने के लिए आती है। जब आप इस परीक्षा को पास कर लेते हैं तो अपने आप आपके सफलता का आरंभ हो जाता है।