पिचाई ने दुनिया में बजायाअपने नाम का डंका 

                                                          
success story of sundar pichai


सुन्दर पिचाई की यह कहानी हमें सन्देश देती है की आप भले ही किसी परिवार,परिवेश,अवस्था अथवा अमीरी गरीबी में जन्म लें,अगर आपके अंदर बड़ा बनने की सोच,मेहनत करने की क्षमता और सफल बनने का संकल्प हो तो आप किसी भी ऊंचाई पर पहुंच सकते हैं। 

भारत में शुरू से ही प्रतिभावान व्यक्तयों की कमी नहीं रही है। क्षेत्र चाहे ज्ञान विज्ञान का हो या फिर कला-संस्कृति या अर्थ-व्यापार का, भारत में एक से बढ़कर एक ऐसी सख्सियत हुई है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से देश में ही नहीं,संसार भर में नाम कमायाहै। संसार का किसी भी देश का उदहारण देख लीजिये,वहां की जानी मानी कंपनियों की मुख्य कर्ता-धर्ता भारतीय ही दिखाई पड़ेंगे। यही वह कारण रहा है की किसी समय भारत को विश्वगुरु  कहा जाता था। 
यहाँ हम एक ऐसी ही भारतीय की कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके नाम और काम को पूरी दुनिया सलाम करती है। उस व्यक्ति का नाम है-पुरे संसार में सर्च इंजन के रूप में मशहूर गूगल कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.ई.ओ.) श्री सुन्दर पिचाई। 
                                              

सुन्दर पिचाई का जन्म 

सुन्दर पिचाई का जन्म सन 1972 में मद्रास में हुआ था। आज मद्रास को चेन्नई के नाम से जाना जाता है,उनके पिता वैसे तो एक ब्रिटिश कंपनी 'जनरल इलेक्ट्रिक कॉरपोरशन (जी.ई.सी.) में इंजीनियर थे पर इसके वावजूद उनके जिंदगी बहुत ही साधारण थी। दो कमरों की मामूली सी माकन था ,जिसमे सुन्दर पिचाई अपने माता पिता के साथ रहा करते थे। मामूली सा जीवन गुजरने वाले सुन्दर पीछे के भीतर प्रतिभा कूट  कर भरी हुई थी। 

उनकी विलक्षण प्रतिभा को महसूस करते हुए उनके पिता उन्हें खूब शिक्षा दीक्षा दिलाना चाहते थे ताकि वह अपनी प्रतिभा से परिवार के साथ साथ देश का नाम भी रोशन कर सके। आपको जानकर आश्चर्य होगा की बचपन में ही सुन्दर पिचाई को हजारों लोगों के फोन नंबर और नाम जुबानी याद थे। उनकी इस खासियत के चलते उनको एक चलती फिरती डायरेक्टरी मन जाता था। उनके दोस्त आज भी उनकी इस प्रतिभा की परीक्षा लिया करते हैं। वे जब भी पुराने से पुराने परिचितों का नाम और टेलीफोन नंबर पूछते हैं तो सुन्दर तुरंत बता देते हैं।

ड्रॉइंग रूम के फर्श पर सो कर 

 पिताजी एक अच्छी नौकरी करते थे,इसलिए सुन्दर को पैसों की कोई कमी बड़ी समस्या नहीं थी। उनका शौक कुछ था बस यही की अच्छी अच्छी कितबों को पढ़ना और उनसे ज्ञान को हासिल करना। दो कमरे का माकन था इसलिए जगह की कमी के चलते सुन्दर अपने छोटे भाई के साथ ड्रॉइंग रूम के फर्श पर सोते थे। और भाई जब गहरी नींद में सो जाता था तो वह देर तक पढ़ाई किया करते थे। वह क्रिकेट के भी अच्छे खिलाड़ी भी थे। उन्हें पढ़ने से जब  फुर्सत मिलती तो दोस्तों के साथ मैदान में चले जाया करते थे और जैम कर क्रिकेट खेलते थे.उन्हें अच्छा क्रिकेट खेलने के लिए भी स्कूल में पुरस्कृत किया गया था। 

सुन्दर पीछे के बचपन के दोस्त उनकी खूबियों को बताते हुए कहते हैं कि वह समस्याओं को पैदा करने वाला नहीं,जटिल से जटिल समस्याओं  को सुलझाने वाला व्यक्ति था वह हर विषय को एक अलग प्रकार से सोचता था और समस्याओं को अपनी प्रतिभा के विकास के हथियार मन कर उसका हल ढूंढ़ने में यकीं करता था.उसकी इसी प्रकार की खूबियों  ने उसे एक महान और सफल इंसान बनाया। 

सुन्दर पिचाई की शिक्षा 

सुन्दर की प्रारंभिक शिक्षा मद्रास के पदम शेषाद्रि बाल भवन में हुई। उसके बाद उन्होंने आई.आई.टी.खड़गपुर से बी. टेक.की डिग्री हासिल की। जैसा की एक कहावत है कि पूत के पांव पलने में नजर आ जाते हैं, ठीक उसी प्रकार से उन्होंने अपनी विशेष प्रतिभा का परिचय देते हुए आई.आई.टी. खड़गपुर में टॉप किया और फिर उसके बाद एम. एस. की डिग्री हासिल करने के लिए स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया।पेंसिलवानिया यूनिवेर्सिटी से एम.बी.ए. की डिग्री ले राखी है। आप को यह जानकर आश्चर्य होगा की सुन्दर ने 17 साल की उम्र में ही आई.आई.टी. की प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी। 

आई.आई. टी. खड़गपुर में सुन्दर पिचाई को पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर सनत कुमार रॉय सुन्दर की आगे बढ़ने की ललक और जिंदगी में कुछ खाश करने की इच्छा का परिचय देते हुए कहते हैं,"प्रतिभा किसी आमिर-गरीब में कोई भेद नहीं करती है। सुन्दर कोई आमिर नहीं था। न तो उसके घर में टेलविजन था और न कहीं आने जाने के लिए कार। आई. आई. टी. खड़गपुर के हॉस्टल में भी वह बहुत ही साधारण तरीके से रहता था। उसे देख कर किसी को यह एहसास नहीं होता था की यह किसी विलक्षण प्रतिभा वाला छात्र  होगा और भविष्य में बहुत बड़ा बनेगा। उसकी जिज्ञासा का यह आलम था की वह मेटलर्जिकल एंड मैटेरियल साइंस का छात्र होने के वावजूद इलेक्ट्रॉनिक के  विषयों में बहुत ज्यादा रूचि  था  जो उस वक्त हमारे पाठ्यक्रम में था ही नहीं। पर लोग उसकी प्रतिभा को  देखकर तब हैरान हो गए, जब उसने  बैच में टॉप किया और रजत पदक हासिल किया।"

आई. आई. टी. से निकलने के बाद सुंदर ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने अपने दाम पर विभिन कंपनियों में काम करते हुए आज से लगभग 11  साल पहले गूगल में नौकरी करनी  शुरू की और फिर अपने उत्थान का एक नया इतिहास रच दिया। ऐसा भी नहीं है कि काँटों के रस्ते से गुजरकर फूलों की सेज तक पहुंचने वाले सुन्दर को कामयाबी तोफे में मिली। दरअसल उन्होंने  सफलता हासिल करने से पहले कई प्रकार की दिक्कतें भी झेलीं। जिस समय उन्होंने गूगल में नौकरी  शुरू की ,उस समय उन्हें एक साधारण इंजिनियर माना जाता था. कहा तो यह भी जाता है की कई बार गूगल ने तमाम प्रकार की समस्याएँ पैदा हुई, जिनके लिए सीधे तौर पर सुन्दर पिचाई को जिम्मेदार मान कर दण्डित करने की भी बात चलाई गई। पर इससे भी सुन्दर निराश नहीं हुए।  उन्होंने उन समस्याओं को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और  उन्हें हल कर अपनी क्षमता का लोहा मनवा दिया। उसके बाद तो गूगल में सुन्दर के नाम की धूम मच गई। 

परेशानियों का आना जरुरी है 


सुन्दर पिचाई कहते हैं कि समस्यांएं और मुश्किलें तो आपके सहस,धौर्य,प्रतिभा और योग्यता की परीक्षा लेने के लिए आती है। अगरआप इस परीक्षा में पास हो जाते हैं तो आपके सफल बनने का रास्ता साफ हो जाता है।  अगर मैं भी जिंदगी की  रह में आने वाली मुस्किलो से हार गया होता तो मुझे निश्चित तौर पर यह पद और परतिष्ठा नहीं मिल पाती,जो आज मेरे पास है।  अगर  सफल बनना है तो आपको हमेशा यह यद् रखना होगा कि व्यावधानों से लड़कर जीत नहीं हासिल की जा सकती। उन पर बुद्धिमानी से जीत पाई जाती है। आपको यह मन कर चलना चाहिए  कि जो पत्थर आपके रास्ते  की रुकावट बन रहा है,वह एक दिन आपकी बुलंद ईमारत की नींव बनाने में काम आ सकता है।  पिचाई के एक सहपाठी और  साथ 8 साल तक गूगल में काम करने वाले सेजार सेन गुप्ता कहते हैं,"कठिन से कठिन परिस्तिथियों में भी मैंने उन्हें अपना आपा खोते हुए नहीं देखा। रही बात उनके व्यक्तित्वा की तो शायद गूगल में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं होगा जो उन्हें पसंद नहीं करता हो। उनका मधुर व्यवहार हर किसी को  तरफ आकृस्ट कर  लेता है। मेरा मानना है कि व्यक्ति की सफलता में उसके मधुर व्यवहार की भी एक महत्वपूर्ण  होती है। "

इस प्रकार से हम देखते हैं कि  मद्रास के परम्परावादी परिवेश और दो कर्मों के साधारण से मकान से बहार निकल कर दुनियां में शानदार सफलता हासिल करने वाले सुन्दर पिचाई कि कहानी किसी परिकथा से काम नहीं है. उन्होंने अभी हल में ही अपने माता पिता के लिए चेन्नई में करोड़ों रूपए की लगत से एक महलनुमा मकान ख़रीदा है।आज उनके पास संसार की कीमती से कीमती गाड़ियों का काफिला है और कदमों में सुख सुविधाओं का ढेर लगा हुवा है। पर इसके वावजूद सुन्दर की विनम्रता में कोई कमी नहीं आई है। वह सबसे उसी प्रकार  हैं , जैसा अपने साधारण दिनों में मिला करते हैं। इतनी अपर सफलता हासिल करने के वावजूद उनके अंदर  किसी प्रकार का घमंड नहीं आया है। शायद उनकी इसी खूबी ने उनके सिर पर सफलता का ताज रखा। 

पिचाई ने बजाया डंका 

गूगल का सी. ई.ओ. बनने से पहले संसार की मशहूर इंटरनेट और सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट का सी.ई.ओ. बनाने की बात चली थी किन्तु बाद  सुन्दर की जगह एक अन्य भारतीय सत्य नडेला को उस जगह के लिए चुना  गया। आज सुन्दर किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उनके पास अंतरास्ट्रीय शोहरत के साथ साथ सैकड़ों करोड़ों रूपये की बेसुमार दौलत भी  है।सबसे बड़ी बात यह है की उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर अंतरास्ट्रीय जगत में भारत के नाम का डंका बजाया है। 

सुन्दर पिचाई की यह कहानी हमें सन्देश देती है की आप भले ही किसी परिवार,परिवेश,अवस्था अथवा अमीरी गरीबी में जन्म लें,अगर आपके अंदर बड़ा बनने की सोच,मेहनत करने की क्षमता और सफल बनने का संकल्प हो तो आप किसी भी ऊंचाई पर पहुंच सकते हैं। 
                                          
एक कहावत भी है की अगर आपको दौलत कमाने है तो सबसे पहले सफल बनने का प्रयास कीजिए। एक बार सफलता हासिल हो जाती  है तो पीछे पीछे दौलत अपने आप आ जाती है।     

मेरी सलाह 

जीवन में हमेशा कभी भी सीखने में पीछे नहीं होना चाहिए। जब तक हम सीखेंगे नहीं तब तक तक हम जीवन में आगे बढ़ नहीं सकते हैं।